इस साल दिल्ली में कड़कड़ाती ठंड की वजह से कई बेघरों की जान चली गई। सड़कों पर ठिठुरने को विवश होकर भूख और ठंड से जंग करते है। शहरों में रहने वाले लाखों लोग घर से बेघर है और सड़कों पर रहते है।
दिल्ली में ही 15 लाख लोगों के सिर पर छत नहीं है। इसमें भी 10 हज़ार महिलाएं हैं जो बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर रहती हैं जहां उनमें यह डर रहता है कि कहीं कुछ हो न जाए। यह सोच कर कुछ महिलाओं ने रैन बसेरा में शरण ली है। दिल्ली के आनंद विहार के 242 नंबर रैन बसेरा में रीना कुमारी अपनी 19 साल की बेटी के साथ रह रही हैं। जिसके पास रहने के लिए छत नहीं है वह साहिबाबाद की एक फैक्टरी में काम करती हैं। दुबला-पतला शरीर होने के कारण फैक्टरी में 50-50 किलो का वजन उठाना पड़ता है। 150 से अधिक कर्मचारियों के बीच में वो अकेली महिला है।
कुछ भी हो जाए तो भी पुलिस नहीं आती
अधिकतर बेघर महिलाएं सड़क किनारे पटरी लगाकर कुछ सामान बेचती हैं। लेकिन इन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है। बेघर लोगों को कोई पूछता नहीं है। पेट पालने के लिए पटरी पर सामान बेचो तो पुलिस वाले उठाकर फेंक देते है। कुछ शराबी लोग सामान छीन लेते है। ऐसे में कोई महिला भीख नहीं मांगेगी तो क्या करेगी यहां के लोगों का कहना है कि पुलिस वालों को लाख फोन करो लेकिन वे नहीं आते। कई बार लोग शराब पी कर या ड्रग्स लेकर आ जाते हैं। मना करो तो चाकू दिखा कर मारने की धमकी देते हैं। पुलिस बोलती है कि रैन बसेरा में शराबी, नशेड़ी या अपराधी किस्म के लोग नहीं आएंगे तो क्या अच्छे घर के लोग आएंगे। कोई भी हो, रैन बसेरा में उसे जगह देनी ही होती है।
कई महिलाएं मंदिर की सीढ़ियों को ज्यादा सुरक्षित बताती है
महिलाएं शेल्टर होम की जगह मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, अस्पताल जैसी सार्वजनिक जगहों पर रहती है क्योंकि उन्हें सबसे ज़्यादा वही सुरक्षित लगता है।कुछ महिलाओं का कहना है आप शेल्टर होम्स में अपनी पंसद का खाना नहीं बना सकते। रैन बसेरों में रहने वाले यह नहीं चुन सकते कि उन्हें क्या खाना है क्या बनाना है। सब बना हुआ आता है खाने में से बदबू आती है और रोटी सूखी हुई आती है जिसकी वजह से उन्हें भूखा ही सोना पड़ता है। अपने बच्चों को भी भूखा सुलाते है। सबसे बड़ा मुद्दा निजिता और सुरक्षा का है। रैन बसेरा में कई बार नशा करने वाले आ जाते हैं। उनके साथ छेड़ छाड़ भी करते है। दिल्ली के राजा गार्डन में शेल्टर होम है लेकिन पास में एक फ्लाई ओवर के नीचे 25-30 महिलाएं रहती हैं। इसका कारण यही है। कि ये महिलाएं इस कड़कड़ाती ठंड में भी बच्चों के साथ रहती हैं वो पास के सेंटर में नहीं जाती। इसका कारण यही है कि उन्हें यहां ज्यादा सुरक्षा लगती है।अकेली रहने वाली महिलाएं खुद को ज्यादा असुरक्षित महसूस करती हैं। बंगला साहेब गुरुद्वारा, सरायकेला खां, मीना बाजार उर्दू पार्क जैसे रैन बसेरों में महिला और पुरुषों का शेल्टर साथ साथ है। इससे महिलाओं की सुरक्षा खतरे में पड़ती है। सड़क किनारे सोने पर या रहने पर लोग सेक्स वर्कर समझ लेते हैं। इसलिए गाली-गलौज की भाषा में लोग बात करते हैं।
रैन बसेरों के आसपास घूमते अपराधी चाकू भी मार देते है।
कई रैन बसेरे ऐसे हैं जिनके आसपास अपराधी मंडराते रहते हैं। दिल्ली के सदर बाजार इलाके के कई रैन बसेरों में सुरक्षा बेहद कम है। पहाड़गंज में भी रैन बसेरों में लोग सुरक्षित नहीं हैं। कुछ लोग नशे करते है अगर किसी ने टोक दिया तो चाकू तक मार देते हैं। ऐसी घटनाएं कई बार हो चुकी है।
रैन बसेरा में हर जगह गंदगी की भरमार
रैन बसेरों के बाथरूम गंदगी से भरे रहते है। वहां कभी सफ़ाई नही होती हमेशा बदबू आती है। एक ही बाथरूम को कई लोग इस्तेमाल करने वाले होते है। सफाई कर्मी है लेकिन सफाई नाम मात्र की भी नहीं होती। यानी ये रैन बसेरा बीमारियों का केंद्र है। यह लोग बिल्कुल सफ़ाई नही रखते है। उनके बिस्तर और कंबलो से बदबू आती है।
रैन बसेरा में एक बड़ा कमरा है जिसमें 50 लोगों के बिस्तर हैं। यहां एक कोने में एक के ऊपर एक कई कंबल रखे हैं। 10 साल से रैन बसेरे में रह रहे हैं लेकिन कभी नया कंबल नहीं देखा। पुराने और बदबूदार कंबल ही ओढ़ने पड़ते है।
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